प्रारंभिक जीवन और कठिनाइयाँ
अक्टूबर 15, 1931 को, तमिलनाडु के रमेश्वरम में जन्मे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन आत्मोत्सर्ग और राष्ट्र की सेवा के लिए समर्पित था। उनका पालन-पोषण एक मछुआरें परिवार में हुआ था, जहाँ प्रमुखत: मध्यम वर्गीय मूल्य और गरीबी की चुनौतियाँ थीं। उनके पिता ने उनके जीवन में सच्चाई और मेहनत के महत्व को बचपन से ही उन्हें सिखाया, जिसके कारण उन्होंने कभी कठिन हालात के सामने घुटने नहीं टेके।
डॉ. कलाम की बचपन से ही विज्ञान और उड़ानों के प्रति गहरा लगाव था। वे भारतीय वायु सेना में पायलट बनने की ख्वाहिश रखते थे, परंतु उनके सपने को एक झटका लगा जब वे केवल एक रैंक से चयनित नहीं हो सके। इस असफलता के बावजूद उनका हौंसला न टूटा और वैज्ञानिक बनने का सपना उन्होंने पूरा किया। यह रास्ता ही उनके नए समर्पण का साधन बन गया।
वैज्ञानिक यात्राएं और उपलब्धियाँ
29 वर्ष की आयु में, उन्होंने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में कार्य आरंभ किया। कुछ समय बाद, 38 वर्ष की उम्र में उनका स्थानांतरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में हुआ। इसरो में काम करते हुए, डॉ. कलाम ने भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, एसएलवी-III के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उपलब्धि भारत के लिए अंतरिक्ष की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम थी।
मई 1998 में, डॉ. कलाम ने पोखरण-II प्रोजेक्ट के तहत भारत की सफल परमाणु परीक्षणों में निर्णायक भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के सचिव होने के नाते वे इस परियोजना के तकनीकी और राजनीतिक पहलों का सफलतापूर्वक संचालन किया। इन परीक्षणों के पश्चात, भारत विश्व के सामने एक परमाणु शक्ति के तौर पर उभरी, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ बनाया तथा वैश्विक स्तर पर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को परिपक्व किया।
भारत के राष्ट्रपति के रूप में भूमिका
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 71 वर्ष की आयु में, 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। 'जनता के राष्ट्रपति' के नाम से विख्यात, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सरलता और अपनत्व का परिचय दिया। उन्होंने राष्ट्राध्यक्ष की गरिमा तो बढ़ाई ही, साथ ही छात्रों और युवाओं के साथ गहरे संबंध स्थापित किए। वे अक्सर बच्चों के साथ संवाद करते थे और उन्हें बड़ा सपना देखने और कठिन परिश्रम करने के लिए प्रेरित करते थे। उन्हें यह विश्वास था कि युवाएं ही एक विकसित भारत के वाहक बन सकते हैं।
वैवाहिक जीवन का अभाव
अपने जीवनकाल में डॉ. कलाम ने अविवाहित रहने का मार्ग चुना। इस विषय पर हंसी-हंसी में, पर कभी-कभार गंभीरता से उन्होंने कहा, 'मुझे रॉकेट विज्ञान समझना शादी से आसान लगता है।' जब उनसे इसके पीछे का कारण पूछा जाता, तो उन्होंने अक्सर कहा कि व्यक्तिगत इच्छाएं और पारिवारिक जिम्मेदारियां उनके राष्ट्रीय योगदान को प्रभावित कर सकती हैं। वे महसूस करते थे कि अविवाहित रहने से उन्हें अपने काम पर अधिक केंद्रित रहने का मौका मिलता, जिससे वे भारत की रक्षात्मक और वैज्ञानिक उन्नति में महत्वपूर्ण योगदन दे सकते थे।
डॉ. कलाम की विरासत
देश के मिसाइल मैन के रूप में डॉ. कलाम का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने राष्ट्र के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया, जिसने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी देशों की पंक्ति में लाया। उनका समर्पण और जीवन की सादगी आज भी लाखों लोगों को प्रेरणा प्रदान करती है। आज जब हम उनके योगदान को याद करते हैं, यह हमारे लिए प्रेरणास्रोत है कि कैसे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अदम्य इच्छा शक्ति और मेहनत से बड़ी से बड़ी मंजिल प्राप्त की जा सकती है।
sneha arora
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