
नतीजे और बड़ा संकेत
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों में इस बार तस्वीर साफ दिखी—Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP) ने चार में से तीन पद जीतकर कैंपस में अपना वर्चस्व दिखा दिया। अध्यक्ष पद पर आर्यन मान ने NSUI की जोसलीन नंदिता चौधरी को 16,196 वोटों के बड़े अंतर से हराया। यह सिर्फ एक जीत नहीं, 2024 में अध्यक्ष पद खोने के बाद ABVP की जोरदार वापसी का संकेत भी है।
DUSU चुनाव 2025 की पोलिंग शुक्रवार को कड़ी सुरक्षा में हुई। सुबह 8:30 से 1 बजे और शाम 3 से 7:30 बजे तक दो शिफ्ट में वोट डाले गए ताकि डे और ईवनिंग कॉलेज के छात्र-छात्राओं को मौका मिले। 2.75 लाख से ज्यादा पंजीकृत मतदाताओं में करीब 40% ने वोट किया। मतगणना यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स स्टेडियम के मल्टीपर्पस हॉल में 18-20 राउंड में कड़ी निगरानी के बीच पूरी हुई।
चारों पदों पर मुख्य मुकाबला ABVP, NSUI और AISA-SFI गठबंधन के बीच था। उपाध्यक्ष का पद NSUI ने बचा लिया, बाकी तीन जगह ABVP ने कब्जा जमाया। यह परिणाम पिछले दशक के कैंपस ट्रेंड से मेल खाते हैं, जहां ज्यादातर चुनावों में ABVP बढ़त बनाती रही है, हालांकि बीच-बीच में NSUI ने भी अहम पद जीते हैं।
- अध्यक्ष: ABVP के आर्यन मान — 28,841 वोट; NSUI की जोसलीन नंदिता चौधरी — 12,645; AISA-SFI की अंजलि — 5,385; एक निर्दलीय (NSUI के बागी) — 5,522
- उपाध्यक्ष: NSUI के राहुल झांसला — 29,339; ABVP के गोविंद तनवा — 20,547; AISA-SFI के सोहन — 4,163
- सचिव: ABVP — 23,779; NSUI — 16,177; AISA-SFI — 9,535
- संयुक्त सचिव: ABVP — 21,825; NSUI — 17,380; AISA-SFI — 8,425
अध्यक्ष पद पर मिली भारी बढ़त ने आर्यन मान को कैंपस की राजनीति में तुरंत केंद्र में ला दिया है। DUSU का इतिहास बताता है कि यहां से निकले कई चेहरे राष्ट्रीय राजनीति तक पहुंचे—अरुण जेटली, विजय गोयल और अजय माकन जैसे नाम इसका उदाहरण हैं। यही वजह है कि इस कुर्सी का प्रतीकात्मक महत्व सिर्फ विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं रहता।
कैंपेन में मुद्दे बेहद ठोस और रोज़ाना जिंदगी से जुड़े रहे। ABVP ने मेट्रो पास में सब्सिडी, पूरे कैंपस में फ्री वाई-फाई, दिव्यांग छात्रों के लिए एक्सेसिबिलिटी ऑडिट और बेहतर स्पोर्ट्स इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे वादों पर फोकस किया। NSUI ने हॉस्टल की कमी, सुरक्षा और मेंस्ट्रुअल लीव जैसे सवालों को केंद्रीय बनाया। वाम गठबंधन AISA-SFI ने फीस वृद्धि वापस लेने, जेंडर सेंसिटाइज़ेशन और शिकायत निवारण तंत्र की बहाली की बात उठाई।
- ABVP के वादे: सस्ती/सब्सिडाइज्ड मेट्रो पास, कैंपस-वाइड फ्री वाई-फाई, दिव्यांग-अनुकूल ढांचा, खेल सुविधाओं का विस्तार
- NSUI के वादे: हॉस्टल सीटें बढ़ाना, कैंपस सुरक्षा, छात्राओं के लिए मेंस्ट्रुअल लीव, परिवहन सुविधाएं
- AISA-SFI के वादे: फीस हाइक रोलबैक, जेंडर सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम, शिकायत निवारण तंत्र की बहाली
नौ दिनों तक चले प्रचार में सोशल मीडिया की आक्रामक मौजूदगी दिखी—रील्स, शॉर्ट वीडियोज़ और कॉलेज-टू-कॉलेज आउटरीच ने माहौल बनाया। नए बैच के छात्रों के लिए यह पहला बड़ा चुनावी अनुभव था, जहां मुद्दे सीधे उनकी जेब, यात्रा और कक्षाओं तक जुड़े थे।
नतीजों के साथ ही राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आईं। केंद्रीय गृह मंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री ने विजेताओं को बधाई दी, तो NSUI के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने हार स्वीकार करने के साथ यह आरोप भी दोहराया कि NSUI को ABVP के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रशासन, दिल्ली व केंद्र सरकार और पुलिस—इन सबकी संयुक्त ताकत का सामना करना पड़ा। यह कैंपस में बहस का हिस्सा रहा है और आगे भी रहेगा।
अब असल परीक्षा शुरू होती है—वादों को कैसे लागू किया जाएगा। DUSU की औपचारिक शक्तियां सीमित हैं, पर छात्रसंघ की राजनीतिक हैसियत और जन-समर्थन उसे प्रशासन, कॉलेजों और सरकारी एजेंसियों के साथ बातचीत में वजन देता है। मेट्रो पास पर छूट के लिए DMRC और सरकार की मंजूरी चाहिए; वाई-फाई और खेल सुविधाओं के लिए यूनिवर्सिटी की फंडिंग और प्राथमिकताओं का साथ जरूरी होगा। दिव्यांग-अनुकूल कैंपस के लिए विभागों के बीच समन्वय, ऑडिट और समयबद्ध क्रियान्वयन चाहिए।
दिल्ली विश्वविद्यालय 90 से ज्यादा कॉलेजों और कई फैकल्टीज़ वाला विशाल संस्थान है। यहां हॉस्टल सीटें वास्तविक मांग से काफी कम हैं, इसलिए बाहर से आए छात्र किराये के मकानों पर निर्भर रहते हैं। कैंपस सुरक्षा, देर शाम तक लाइब्रेरी एक्सेस, बस रूट और लास्ट-माइल कनेक्टिविटी—ये रोज़मर्रा के मसले हैं जिन पर छात्रसंघ को ठोस रोडमैप देना होगा।
वोटिंग पैटर्न बताता है कि छात्रों ने मुद्दों के हिसाब से अलग-अलग पदों पर अलग फैसला दिया—इसे स्प्लिट जनादेश कहा जा सकता है। उपाध्यक्ष पद NSUI के खाते में गया, जो बताता है कि कैंपस में एंटी-इंकम्बेंसी की धारणा एकतरफा नहीं थी। ABVP ने अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव की जीत से अपने कोर वोट और संगठनात्मक नेटवर्क को फिर से सक्रिय दिखाया। AISA-SFI का वोट शेयर बताता है कि फीस, जेंडर और कैंपस लोकतंत्र के मुद्दों पर उनका एक समर्पित आधार मौजूद है, भले सीटें न आई हों।
कैंपस राजनीति के संकेत कैबिनेट राजनीति से अलग नहीं होते। शहरी, शिक्षित युवा वोटर किस मुद्दे पर लामबंद होता है—यह पार्टियों के लिए बड़ा संकेत है। 2025 में जब कई राज्यों में चुनाव और नीतिगत फैसले तय होंगे, DU का यह नतीजा बताता है कि “प्रैक्टिकल वेलफेयर + सांस्कृतिक नैरेटिव” का मिश्रण असरदार है। यह फॉर्मूला अगर कॉलेज परिसरों में काम करता है, तो उसकी प्रतिध्वनि शहरों के युवा इलाकों में भी सुनाई देती है।
मतदान प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही, छिटपुट नोकझोंक के अलावा कोई बड़ी गड़बड़ी रिपोर्ट नहीं हुई। चुनाव आयोग और विश्वविद्यालय प्रशासन की निगरानी, सीसीटीवी, प्रवेश-नियंत्रण और सुरक्षाबलों की तैनाती ने दिन को व्यवस्थित रखा। मतगणना के दौरान उम्मीदवारों और एजेंटों को राउंड-वार अपडेट मिलते रहे, जिससे परिणाम पारदर्शी रहे।
अगले कुछ महीनों में नए छात्रसंघ को तीन फ्रंट पर एक साथ काम करना होगा—पहला, तात्कालिक सुविधाएं (वाई-फाई, परिवहन, खेल); दूसरा, संरचनात्मक सुधार (हॉस्टल, दिव्यांग-अनुकूल इन्फ्रा, सुरक्षा प्रोटोकॉल); तीसरा, शैक्षिक नीतियां जिनका असर कक्षाओं और परीक्षाओं तक जाता है (NEP के तहत क्रेडिट सिस्टम, इंटर्नशिप, स्किल मॉड्यूल)। CUET के बाद प्रवेश प्रक्रिया बदली है, इसलिए अकादमिक कैलेंडर, ओवर-एडमिशन और कक्षाओं की उपलब्धता जैसे मुद्दे भी बार-बार सामने आएंगे।
महिला छात्रों के लिए सुरक्षित और सक्षम माहौल बनाना बड़ा एजेंडा है—पोश समितियों का प्रभावी कामकाज, रात तक लाइब्रेरी और लैब एक्सेस, कैंपस-टू-मेट्रो रूट पर सुरक्षा, और मेंस्ट्रुअल लीव जैसे कदमों पर खुले संवाद की जरूरत होगी। यहां छात्रसंघ की भूमिका केवल मांग करने की नहीं, नीति का ठोस ड्राफ्ट तैयार कर प्रशासन के साथ साझा करने और निगरानी करने की भी है।
वाम संगठनों की मांग—फीस हाइक रोलबैक और शिकायत निवारण की बहाली—सिर्फ विचारधारा नहीं, जेब और न्याय के सवाल से जुड़ी है। अगर DUSU इन मुद्दों पर सर्वदलीय सहमति बनाकर चरणबद्ध रोडमैप रखता है, तो कैंपस की राजनीति मुकाबले से सहयोग की तरफ बढ़ सकती है।
ABVP के लिए यह जीत मनोबल बढ़ाने वाली है। 2024 में अध्यक्ष पद खोने के बाद एक साल में नेरेटिव पलटना आसान नहीं था। संगठन ने ग्राउंड पर क्लास-टू-क्लास आउटरीच, सोसाइटी इवेंट्स और स्पोर्ट्स-कल्चर को टच करने वाली भाषा अपनाई। NSUI ने उपाध्यक्ष पद जीतकर अपनी मौजूदगी दिखाई और बताकर गई कि लड़ाई खत्म नहीं हुई। AISA-SFI ने मुद्दाभिमुख कैंपेन के साथ बहस को वैचारिक धार दी—यह उनकी स्थायी ताकत है।
DU का चुनाव हर साल देशभर के कैंपसों के लिए टोन सेट करता है। अगर वादे पक्के काम में बदलते हैं—जैसे मेट्रो पास पर राहत, फ्री वाई-फाई और एक्सेसिबिलिटी—तो यह मॉडल दूसरे विश्वविद्यालयों में भी मांगा जाएगा। और अगर काम अटकता है, तो वही मुद्दे अगले साल के चुनाव में फिर बैलेट पर होंगे।

कैंपस की राजनीति से बाहर इसका असर
छात्रसंघों की असल ताकत उनकी जन-भागीदारी में है। 40% के आसपास टर्नआउट बताता है कि रुचि स्थिर है, पर इसे ऊपर ले जाने की गुंजाइश भी है। क्लास शेड्यूल, इंटर्नशिप, और शहर में लंबी दूरी का सफर—ये सब वोटिंग डे पर फर्क डालते हैं। अगर प्रशासन और छात्रसंघ मिलकर वोटर-फ़्रेंडली व्यवस्थाएं बनाएं—जैसे कॉलेज-वार स्लॉटिंग, माइक्रो शटल्स, और औपचारिक “स्टूडेंट हॉलिडे विंडो”—तो भागीदारी बढ़ सकती है।
राष्ट्रीय राजनीति के लिए यहां का संदेश साफ है—युवा मतदाता घोषणापत्र में नाप-तौल कर वादे चाहता है और डिलीवरी की टाइमलाइन भी। वैचारिक बात तभी टिकती है, जब हॉस्टल, सुरक्षा, यात्रा और फीस जैसे रोज़मर्रा के मसलों का समाधान साथ-साथ दिखे। जो दल यह संतुलन साध लेता है, वही कैंपस से शहर तक अपना प्रभाव बढ़ाता है।
फिलहाल गेंद नए DUSU के पाले में है। टीम के सामने काम बहुत है—और समय कम। अगर वे पहले 100 दिनों में 3-4 ठोस नतीजे दिखा दें—जैसे वाई-फाई हॉटस्पॉट का विस्तार, दिव्यांग-अनुकूल ऑडिट की शुरुआत, स्पोर्ट्स ग्राउंड्स की अपग्रेड टाइमलाइन और मेट्रो पास पर औपचारिक बातचीत की प्रगति—तो कैंपस का मूड उनके पक्ष में बना रहेगा। नहीं तो विपक्ष के पास मुद्दों की कमी नहीं है।