सुपर हेवी रॉकेट – क्या है और क्यों जरूरी?

अगर आप अंतरिक्ष में बड़े पेलोड भेजना चाहते हैं, तो सुपर हेवी रॉकेट का होना अनिवार्य है। यह रॉकेट बहुत भारी सैटेलाइट या मानव मिशन को एक ही उड़ान में ले जा सकता है। भारत के लिए भी इस तकनीक की जरूरत बढ़ रही है क्योंकि अगले कुछ सालों में चंद्र और मंगल पर बड़ी योजना हैं।

भारत की वर्तमान सुपर हेवी रॉकेट योजनाएँ

ISRO ने अब तक GSLV Mk III को अपने सबसे बड़े लॉन्चर के रूप में इस्तेमाल किया है, लेकिन वह पूरी तरह से "सुपर" नहीं माना जाता। हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने नई मोटर और फ्यूल टैंक डिजाइन की घोषणा की है जो अगले साल से परीक्षण चरण में होगी। अगर सब ठीक रहा तो इस रॉकेट से 10‑टन तक का पेलोड ले जाया जा सकेगा।

इससे न सिर्फ चंद्र मिशन आसान होगा, बल्कि मंगल पर भी बड़े मॉड्यूल भेजना संभव हो जाएगा। कई निजी कंपनियों ने भी भारत में सुपर हेवी रॉकेट बनाने की इच्छा जताई है, जिससे स्पेस सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कीमतें कम होंगी।

वैश्विक स्तर पर सुपर हेवी रॉकेट का दौड़

अमेरिका ने SpaceX के Starship को लॉन्च किया है, जो 100‑टन पेलोड तक ले जा सकता है। इसी तरह रूस और चीन भी अपने-अपने भारी लॉन्चर विकसित कर रहे हैं। यह दिखाता है कि अंतरिक्ष में आगे बढ़ने के लिए सुपर हेवी रॉकेट एक ज़रूरी हथियार बन गया है।

भारत को अब इन बड़े खिलाड़ियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए अपनी तकनीक तेज करनी होगी। इससे हमारे वैज्ञानिकों को नई सामग्री, इंधन प्रबंधन और एरोडायनामिक्स में शोध करने का मौका मिलेगा। अंत में यह सब राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास दोनों को मदद करेगा।

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स्पेसएक्स का ऐतिहासिक कदम: सुपर हेवी रॉकेट को एक घंटे में फिर से लॉन्च करने की क्षमता
Anuj Kumar 14 अक्तूबर 2024 0

स्पेसएक्स का ऐतिहासिक कदम: सुपर हेवी रॉकेट को एक घंटे में फिर से लॉन्च करने की क्षमता

एलन मस्क ने घोषणा की कि सुपर हेवी रॉकेट, जो अपनी पांचवी परीक्षण उड़ान के बाद सुरक्षित लौटा, एक घंटे में फिर से लॉन्च किया जा सकता है। स्पेसएक्स ने पहली बार अपने लॉन्च पैड पर यांत्रिक भुजाओं की मदद से बूस्टर को सफलतापूर्वक पकड़ा है। यह अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में एक असाधारण उपलब्धि है, जो तेजी से पुनः उड़ान के लिए स्पेसएक्स के लक्ष्य को बढ़ावा देती है।

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