बंगाल के प्रसिद्ध नाटककार और अभिनेता मनोज मित्र का निधन, बंगाली थिएटर में उनका योगदान अमूल्य

बंगाल के प्रसिद्ध नाटककार और अभिनेता मनोज मित्र का निधन, बंगाली थिएटर में उनका योगदान अमूल्य
Anuj Kumar 13 नवंबर 2024 14

मनोज मित्र: बंगाली नाट्य जगत का स्तम्भ

मनोज मित्र, बंगाली थिएटर और फिल्म जगत के एक महानायक थे, जिनका निधन 86 वर्ष की उम्र में कोलकाता के एक निजी अस्पताल में हुआ। उनकी लंबी बीमारी के बाद, उनकी अंतिम सांस मंगलवार, 12 नवंबर, 2024 को 8:50 बजे ली। उनके निधन की पुष्टि उनके भाई और प्रसिद्ध लेखक अमर मित्र ने की। उसी दिन उनका पार्थिव शरीर श्रद्धांजलि के लिए रबीन्द्र सदन में रखा गया।

जीवन की यात्रा

22 दिसंबर, 1938 को तत्कालीन अविभाजित बंगाल के सताखरा जिले के धुलीहर गाँव में जन्मे मित्र का जीवन सरल नहीं था। उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से 1958 में दर्शनशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। मित्र ने कॉलेज के दौरान ही नाटक की दुनिया में कदम रखा, जहाँ उनके साथी रहे थे बादल सरकार और रुद्रप्रसाद सेनगुप्ता। दर्शनशास्त्र में अपनी मास्टर डिग्री उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की और आगे शोध कार्य भी किया।

नाटक और फिल्मों की यात्रा

1957 में उन्होंने थिएटर में अभिनय की शुरुआत की और 1979 में फिल्मी दुनिया में कदम रखा। वो विभिन्न कॉलेजों में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे और बाद में रबीन्द्र भारती विश्वविद्यालय में नाटक विभाग के अध्यक्ष बने। उनका पहला नाटक "मृत्यु के चक्षी जाल" 1959 में लिखा गया था, लेकिन 1972 में लिखे गए उनके नाटक "चाक भांगा मधु" ने उन्हें ख्याति दिलाई। उन्होंने "सुंदरम" नामक थिएटर समूह की स्थापना की और बाद में "रितायन" बनाकर उससे जुड़ गए, फिर "सुंदरम" में लौटे। उनके प्रसिद्ध नाटकों में "अबसन्न प्रजापति," "नीला," "सिंहद्वार," और "फेरा" शामिल हैं।

फिल्मी करियर और पुरस्कार

मनोज मित्र ने तपन सिन्हा, तरुण मजूमदार, बसु चटर्जी और सत्यजीत रे जैसे महान निर्देशकों की फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने तपन सिन्हा की "बंचारामेर बागान" में मुख्य भूमिका निभाई और सत्यजीत रे की क्लासिक्स "घर बाइरे" और "गणशत्रु" में यादगार भूमिका अदा की। उनके नाम से 100 से अधिक नाटक जुड़े हैं और उन्होंने प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी अवार्ड जैसे अनेक सम्मान प्राप्त किए।

शोक संदेश और मान्यता

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी समेत कई लोगों ने उनके निधन पर संवेदना व्यक्त की। उन्होंने मित्र के थिएटर और सिनेमा में योगदान की भरपूर प्रशंसा की। मित्र ने 2019 में स्वास्थ्य समस्याओं के चलते पश्चिम बंगा नाट्य अकादमी के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया था।

मनोज मित्र का योगदान, विशेषकर बंगाली नाटकों और फिल्मों में, अमूल्य और अविस्मरणीय रहेगा। उनके समर्पण और कला के प्रति उनके दत्तचित्त प्रेम ने अनगिनत कलाकारों को प्रेरित किया और थिएटर प्रेमियों के दिलों में एक स्थाई स्थान बनाया।

14 टिप्पणि

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    shubham pawar

    नवंबर 13, 2024 AT 18:59
    मनोज मित्र के नाटकों में जो भावनाएँ थीं, वो बस एक नाटक नहीं, बल्कि बंगाल की आत्मा की धड़कन थी। उनकी हर पंक्ति में एक जीवित इंसान बसता था।
    कभी-कभी लगता है कि आज के थिएटर में कोई भी इतना गहरा नहीं जा पा रहा।
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    Nitin Srivastava

    नवंबर 14, 2024 AT 22:10
    उनके नाटकों का भाषाई संरचना तो वास्तव में एक लिटररी मास्टरपीस है। विशेषकर 'चाक भांगा मधु' में उपमाओं का उपयोग बिल्कुल बार्के की तरह था।
    आज के नए लेखक तो बस ट्रेंड्स के पीछे भाग रहे हैं।
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    Nilisha Shah

    नवंबर 16, 2024 AT 12:03
    मैंने उनके नाटक 'नीला' को एक बार रबीन्द्र सदन में देखा था। उस रात के बाद मैंने थिएटर को अलग तरह से देखना शुरू कर दिया।
    कला का असली अर्थ वही है जो आपके अंदर कुछ बदल दे।
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    Kaviya A

    नवंबर 17, 2024 AT 09:10
    वो तो बस एक आदमी थे जिन्होंने अपनी ज़िंदगी नाटकों में डाल दी और अब वो गए... मुझे रोना आ गया
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    Supreet Grover

    नवंबर 19, 2024 AT 02:40
    उनके अभिनय के अलावा, उनकी शिक्षण पद्धति में डिस्कोर्स एनालिसिस और प्रैक्टिकल हरमेन्युटिक्स का एक अद्वितीय संश्लेषण था।
    रबीन्द्र भारती में उनके विभाग का अकादमिक फ्रेमवर्क आज भी मॉडल है।
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    Saurabh Jain

    नवंबर 19, 2024 AT 16:54
    मैंने उन्हें एक बार एक छोटे से गाँव के खुले मैदान में अभिनय करते देखा था।
    उस रात कोई नहीं जानता था कि ये आदमी सत्यजीत रे के साथ काम कर चुका है।
    कला का असली मूल्य उसी जगह दिखता है जहाँ उसकी जरूरत होती है।
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    Suman Sourav Prasad

    नवंबर 20, 2024 AT 14:30
    मैंने उनके नाटकों को पढ़ा है, देखा है, उनके बारे में लिखा है... और अब जब वो नहीं हैं, तो लगता है जैसे कोई बड़ा दरवाज़ा बंद हो गया है।
    क्या हम इतना गहरा नाटक फिर से बना पाएंगे?
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    Nupur Anand

    नवंबर 22, 2024 AT 02:08
    ये सब बकवास है। आज के युवाओं को बस रील्स देखने का अवसर दो।
    मनोज मित्र तो एक अतीत के अवशेष हैं।
    उनके नाटकों में कोई भी वर्तमान की समस्या नहीं थी।
    क्या आप जानते हैं कि आज के युवा एक घंटे के लिए एक नाटक बैठकर नहीं देख सकते?
    तो फिर इन लोगों को याद करने की क्या जरूरत?
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    Vivek Pujari

    नवंबर 23, 2024 AT 13:30
    अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन को कला के लिए समर्पित कर दे, तो वो बस एक इंसान नहीं, वो एक देवता हो जाता है।
    मनोज मित्र ने अपनी आत्मा को नाटक में बलि चढ़ा दिया।
    अब उनकी आत्मा अमर है।🙏
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    Ajay baindara

    नवंबर 25, 2024 AT 07:37
    तुम सब इनके बारे में बहुत ज्यादा बात कर रहे हो।
    मैंने उनके नाटक देखे, लेकिन उनके अभिनय में कुछ भी खास नहीं था।
    कलकत्ता के लोग हमेशा अपने आप को बड़ा बनाते हैं।
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    mohd Fidz09

    नवंबर 25, 2024 AT 08:52
    बंगाली थिएटर की ये विरासत अब भी जीवित है, लेकिन इसे बचाने के लिए हमें अपनी संस्कृति को दुनिया के सामने लाना होगा।
    मनोज मित्र ने बंगाल को दुनिया को दिखाया।
    अब हमारी बारी है कि हम इसे आगे बढ़ाएं।
    नहीं तो ये सब बस एक यादगार बन जाएगा।
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    Rupesh Nandha

    नवंबर 26, 2024 AT 15:37
    उनकी कला का वास्तविक अर्थ यह था कि वह व्यक्ति के अंदर के शोक, आशा, और अस्तित्व के संघर्ष को बाहर निकाल देती थी।
    उन्होंने दर्शनशास्त्र को नाटक के माध्यम से जीवित कर दिया।
    उनके नाटकों में हर पात्र एक अलग दर्शन का प्रतिनिधित्व करता था।
    क्या आज के निर्माता इतना गहरा सोचते हैं?
    क्या आज के नाटकों में एक अध्यात्मिक खोज है?
    या बस एक नाटक बनाने का बिजनेस?
    मनोज मित्र ने नाटक को एक जीवन बना दिया।
    हम उसे एक प्रदर्शन के रूप में देखते हैं।
    उन्होंने इसे एक अस्तित्व के रूप में जीया।
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    suraj rangankar

    नवंबर 27, 2024 AT 16:29
    ये आदमी बस एक अभिनेता नहीं था, वो एक जीवन शिक्षक था।
    उन्होंने बताया कि जीवन क्या है, बिना किसी बात के।
    अगर तुम एक नाटक देखकर रो जाते हो, तो वो नाटक जीवित है।
    उनके नाटकों ने मुझे बदल दिया।
    मैं अब नाटक देखने के बजाय उनके भीतर जाने की कोशिश करता हूँ।
    तुम भी करो।
    ये बस एक याद नहीं, ये एक आमंत्रण है।
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    Kaviya A

    नवंबर 27, 2024 AT 20:08
    बस यही कहना है कि वो अब नहीं हैं... और हम उन्हें भूल गए

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