पारंपरिक नृत्य – भारत की सांस्कृतिक धरोहर
जब हम पारंपरिक नृत्य, भारत में सदियों से चली आ रही नृत्य अभिव्यक्ति, जो कथाओं, रीति‑रिवाजों और सामाजिक जीवन को संगीत और ताल के साथ जोड़ती है. Also known as स्थानीय नृत्य, it सामाजिक समारोहों, त्यौहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में मुख्य भूमिका निभाता है। इस टैग के तहत हम अक्सर शास्त्रीय नृत्य, जिनमें नृत्यशास्त्र की कठोर संरचना और अभिव्यक्तिपूर्ण शारीरिक भाषा होती है और लोक नृत्य, जो जनजीवन की सरलीकृत, उत्सव‑मय अभिव्यक्तियां प्रस्तुत करते हैं को भी कवर करते हैं। इन तीनों के बीच एक स्पष्ट संबंध है: पारंपरिक नृत्य में शास्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य दोनों ही मुख्य घटक हैं, जो विविध प्रांतों में अलग‑अलग रूप लेते हैं।
शास्त्रीय नृत्य की बात करें तो इसमें काथक, उत्तरी भारत की परफॉर्मेंस कला, जिसमें नाट्य, संगीत और ताल का सामंजस्य होता है और भरतनाट्यम, दक्षिण भारत की ज्ञात नृत्य शैली, जिसकी विशेषता कठोर जटिल पैरों की गति और अभिव्यक्तिपूर्ण मुद्राएँ हैं जैसे प्रमुख रूप शामिल हैं। इन शैलियों में नृत्य की कहानी को भावनाओं के माध्यम से दर्शकों तक पहुँचाने के लिए विशिष्ट मार्जन, अभिव्यक्ति और संगीत का प्रयोग होता है। वहीं, लोक नृत्य की विविधता में भांगड़ा, पंजाब की जोशीली जुम्बा‑जुमा नृत्य शैली, जो बासूरा की धुन पर तेज़ कदमों से परिपूर्ण है और गुजरी, राजस्थान की रेत‑भरी जमीन पर धड़ल्ले से नाचने वाली परम्परागत नृत्य शैली जैसे रंगीन रूपों को सम्मिलित करती है। इस प्रकार शास्त्रीय और लोक दोनों ही पक्ष पारंपरिक नृत्य के व्यापक परिदृश्य को बनाते हैं।
पारंपरिक नृत्य के प्रमुख प्रकार और उनका सामाजिक महत्व
प्रत्येक प्रांत में नृत्य न केवल मनोरंजन बल्कि सामाजिक एकता का साधन भी है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर कोरिया के रावण महोत्सव, एक सांस्कृतिक कार्यक्रम जिसमें महाकाव्य रामायण के पात्रों को नृत्य के माध्यम से जीवंत किया जाता है जैसे कार्यक्रम स्थानीय पहचान को सुदृढ़ करते हैं। इसी तरह के समारोहों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, जिनमें विभिन्न नृत्य शैलियों की प्रस्तुति होती है, सामाजिक जागरूकता और सांस्कृतिक शिक्षा को बढ़ावा देते हैं भूमिका निभाते हैं। इन संबंधों के माध्यम से हम देख सकते हैं कि पारंपरिक नृत्य सामाजिक नियमों को प्रतिबिंबित करता है, साथ ही नई पीढ़ियों को सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ता है।
आज की तेज़-रफ़्तार जिंदगी में, कई युवा शहरी केंद्रों में भी इन नृत्य शैलियों को सीखना चाहते हैं। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म और स्थानीय अकादमीज़ ने शास्त्रीय और लोक नृत्य प्रशिक्षण को सुलभ बनाया है, जिससे ग्रामीण‑शहरी अंतर घट रहा है। इस प्रवृत्ति को देखते हुए, हमारे टैग पेज़ में आपको न केवल नृत्य से जुड़ी ख़बरें, बल्कि प्रतियोगिताओं, कार्यशालाओं और नई फिल्म‑संगीत परियोजनाओं की भी जानकारी मिलेगी। आप यहाँ से यह भी पता लगा सकते हैं कि कैसे पारम्परिक नृत्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान बना रहा है।
वास्तव में, हमारे संग्रह में खेल, मौसम, राजनीति और तकनीक से जुड़े कई लेख भी शामिल हैं, जो यह दिखाते हैं कि भारत की सांस्कृतिक धारा कितनी व्यापक है। फिर भी, पारम्परिक नृत्य हमेशा इस धारा का एक जीवंत धड़कन रहा है, चाहे वह महिला क्रिकेट टीम की जीत का जश्न हो या किसी धार्मिक त्यौहार का संगीत। नीचे आप विभिन्न लेखों की सूची देखेंगे, जिसमें नृत्य की गहरी समझ, प्रमुख कलाकारों की प्रोफ़ाइल और आगामी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलक मिलती है। चाहे आप एक नौसिखिया हों या अनुभवी अभिरुचि रखते हों, इन पोस्ट्स में आपके लिए पर्याप्त सामग्री है।

लालू प्रसाद यादव ने भोजपुर के अगिआंव में लौंडा नाच का जलसा किया
लालू प्रसाद यादव ने 27 सितंबर 2025 को भोजपुर के अगिआंव में आयोजित लौंडा नाच और गोंड नृत्य समारोह में सहभागिता दर्ज की, जिससे गाँव में उत्सव की लहर दौड़ी.
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