लालू प्रसाद यादव ने भोजपुर के अगिआंव में लौंडा नाच का जलसा किया

लालू प्रसाद यादव ने भोजपुर के अगिआंव में लौंडा नाच का जलसा किया
Anuj Kumar 30 सितंबर 2025 14

जब लालू प्रसाद यादव, राजनीतिज्ञ और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने शनिवार, 27 सितंबर 2025 को भोजपुर जिले के अगिआंव गांव में आयोजित पारंपरिक सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लिया, तो पूरे गाँव का माहौल जश्न‑उत्सव में बदल गया। वे इस कार्यक्रम में किरण देवी (राजद विधायक) के ससुर, स्वर्गीय भुनेश्वर सिंह यादव की दूसरी पुण्यतिथि मनाने के लिये आए थे।

कार्यक्रम की पृष्ठभूमि और महत्व

अगिआंव में यह समारोह सिर्फ एक साधारण स्मरण सभा नहीं था; यह गाँव के सांस्कृतिक धरोहर को फिर से जीवंत करने का उत्सव था। स्थानीय सरकार ने इस मौके को लौंडा नाच और गोंड नृत्य के प्रदर्शन के साथ जोड़कर एक बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया। कार्यक्रम का उद्घाटन गाँव की युवा टोली ने ढोल-नगाड़े की थाप पर किया, जिसके बाद विभिन्न कलाकारों ने परंपरागत पोशाक में धूप‑छाँव को नाचते हुए दर्शकों की तालियों को बँधा।

लालू यादव का लौंडा नाच से जुड़ाव

लालू यादव के लिए लौंडा नाच कोई नया नहीं है। 2023 में राबड़ी आवास पर आयोजित एक इसी तरह के समारोह में उन्होंने अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव के साथ इस नृत्य का आनंद लिया था। उस समय उन्होंने कहा था, “लौंडा नाच मेरा दिल का सच्चा दोस्त है, ये मेरे बचपन की गली‑गली की ध्वनि फिर से सुनाता है।” इस बार उन्होंने अपनी वैनिटी वैन में आकर लगभग एक घंटे तक नाचते हुए भीड़ को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनका तरीका थोड़ा अनोखा था – वे बैठकर बनावट वाद्य पर थिरकते रहे, जबकि एड़े‑आस-पास के कलाकार उनका साथ देते रहे।

वक्तव्य और उपस्थित लोगों की प्रतिक्रियाएँ

कार्यक्रम के दौरान उपस्थित लोग “लालू‑जिंदाबाद” के नारे लगाए। गाँव की बुजुर्ग महिला सुषमा दे (उपनाम) ने कहा, “हमारी पीढ़ी के नाच अब बड़े मंच पर होते हैं, और अगर लालू सर हमारे साथ होते हैं तो हमें गर्व महसूस होता है।” अरुण यादव (भुनेश्वर सिंह यादव के पुत्र) ने लालू यादव के इस भागीदारी को “समुदाय के साथ जुड़ने का सच्चा तरीका” बताते हुए कहा कि यह “भोजपुरी संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में मदद करेगा।”

राजद विधायक किरण देवी ने भी मंच से कहा, “हमारी पार्टी हमेशा से स्थानीय कला को संरक्षित करने में विश्वास रखती आई है। लालू सर का यहाँ आना इस विश्वास की पुष्टि करता है।” वह आगे जोड़ते हुए कहा कि अगिआंव में इस तरह के कार्यक्रमों से ग्रामीण युवा को रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं।

भोजपुर में सांस्कृतिक विरासत और राजनीति का संगम

भोजपुर पहले से ही भोजपुरी फ़िल्म, संगीत और नृत्य का केंद्र माना जाता है। यहाँ का लौंडा नाच, गोंड नृत्य, और बिदेसिया जैसी कलाएँ कई दशक पुरानी परंतु अभी भी जीवंत हैं। इस क्षेत्र में राजनैतिक नेताओं का जनता के साथ सीधा संपर्क रखना अक्सर सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से होता आया है। लालू यादव का इस प्रकार का जुड़ाव न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत पसंद दर्शाता है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे राजद ने अपनी जड़ें ग्रामीण जनसमुदाय में गहरी उतारी हैं।

ऐसे कार्यक्रम कई बार सामुदायिक तनाव को कम करके सामाजिक एकता बढ़ाते हैं। कहा जाता है कि 2022 में इसी जिले में एक अलग राजनीतिक अधिवेशन के दौरान भी स्थानीय कलाकारों को मंच दे कर तनाव घटाने का प्रयास किया गया था। इसलिए इस बार के समारोह का प्रभाव राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

आगे क्या हो सकता है? भविष्य की संभावनाएँ

विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर राजद इस तरह के सांस्कृतिक पहल को नियमित रूप से जारी रखे तो गांव‑गांव में उनकी जमीनी पकड़ और मजबूत होगी। सामाजिक वैज्ञानिक डॉ. प्रतीक सिंह (इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल रिसर्च) के मुताबिक, “लोक कला के साथ राजनेता का सीधा जुड़ाव जनसंपर्क का सबसे प्रभावी साधन है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ डिजिटल पहुँच अभी भी सीमित है।”
भविष्य में, इस तरह के कार्यक्रमों को बड़े पैमाने पर आयोजित कर प्रदेश‑स्तरीय “भोजपुरी सांस्कृतिक महोत्सव” बनाने की बात चल रही है, जिससे स्थानीय शिल्पकारों और कलाकारों को राष्ट्रीय मंच मिल सकेगा।

लालू यादव ने कार्यक्रम के अंत में कहा कि वह “अगिआंव जैसी गाँवों में फिर से आने की योजना बना रहे हैं, और अगली बार शायद ही हम केवल दर्शक रहें, बल्कि मंच पर भी कदम रखेंगे।” इस वाक्य ने उपस्थित युवा वर्ग में उत्साह की लहर दौड़ा दी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

लालू यादव ने इस कार्यक्रम में कौन‑से नृत्य देखे?

उन्होंने मुख्यतः दो लोक नृत्य देखे: पारंपरिक लौंडा नाच और गोंड नृत्य, जो दोनों ही बिहार‑उत्तरी प्रदेश की प्रमुख सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ हैं।

कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य क्या था?

स्वर्गीय भुनेश्वर सिंह यादव की दूसरी पुण्यतिथि मनाना और साथ ही गाँव की पारंपरिक कला‑संगीत को पुनर्जीवित करना था, जिससे स्थानीय लोगों में सांस्कृतिक गर्व बढ़े।

इस कार्यक्रम में किन राजनैतिक व्यक्तियों ने भाग लिया?

लालू प्रसाद यादव, राजद विधायक किरण देवी, और पूर्व विधायक अरुण यादव ने सभी समारोह में भाग लेकर समर्थन जताया।

भोजपुर में ऐसी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का क्या प्रभाव है?

ऐसे कार्यक्रम स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान करते हैं, युवा वर्ग में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं और राजनीति एवं जनता के बीच सीधा संबंध बनता है, जिससे सामाजिक एकजुटता बढ़ती है।

भविष्य में इस तरह के कार्यक्रमों की संभावनाएँ क्या हैं?

विशेषज्ञों का मानना है कि राजद इस मॉडल को पूरे बिहार में दोहराएगा और अंततः प्रदेश‑स्तरीय भोजपुरी सांस्कृतिक महोत्सव का आधार बनेगा, जिससे स्थानीय कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी।

14 टिप्पणि

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    Vibhor Jain

    सितंबर 30, 2025 AT 22:14

    लौंडा नाच के लिए लालू सर का समर्थन गाँव में एक सकारात्मक इशारा है। स्थानीय कलाकारों को मंच मिल रहा है, यही तो मायने रखता है।

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    Rashi Nirmaan

    अक्तूबर 1, 2025 AT 01:01

    देशभक्ति की भावना को इस तरह के कार्यक्रम से नहीं तोड़ना चाहिए। सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना राष्ट्रीय कर्तव्य है। यहाँ की ध्वनि हमारी पहचान है।

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    Ashutosh Kumar Gupta

    अक्तूबर 1, 2025 AT 03:47

    ऐसे कार्यक्रम अक्सर राजनीतिक सोच के साथ मिलाए जाते हैं, पर असल में यह लोगों को जुड़ने का जरिया बनता है। जब नेता स्वयं भी नाचते दिखते हैं तो जनमानस पर असर गहरा रहता है।

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    Anurag Narayan Rai

    अक्तूबर 1, 2025 AT 06:34

    आज के समय में ग्रामीण क्षेत्रों में सांस्कृतिक पहलें बहुत कम ध्यान पाती हैं, इसलिए इस तरह का आयोजन विशेष महत्व रखता है।
    लौंडा नाच सिर्फ नृत्य नहीं, यह बिहार‑उत्तरी प्रदेश की सामाजिक संरचना का प्रतिबिंब है।
    जब लालू प्रसाद यादव जैसी राष्ट्रीय स्तर की शख्सियत इस मंच पर आती है, तो कलाकारों के आत्मविश्वास में अप्रत्यक्ष वृद्धि होती है।
    यह न केवल पारंपरिक कला को जीवित रखता है, बल्कि युवा वर्ग में रोजगार के अवसर भी सृजित करता है।
    कार्यक्रम के दौरान ध्वनि, ताल और परिधान स्थानीय पहचान को मजबूत करते हैं।
    राजद ने इस क्षेत्र में अपने आधार को मजबूत करने के लिये इस तरह के कार्यक्रमों को रणनीतिक रूप से अपनाया है।
    इसी कारण से पंचायत स्तर पर भी इस पहल को समर्थन मिला है और बजट में आवंटन किया गया है।
    सामाजिक वैज्ञानिकों का कहना है कि सांस्कृतिक सहभागिता जनसंपर्क का सबसे प्रभावी साधन है, और इस घटना से वही सिद्ध होता है।
    जैसे ही लोगों ने लालू सर को बैठकर वाद्य पर थिरकते देखा, वह एक सहज संवाद का रूप ले लिया।
    बुजुर्गों के बीच इस नृत्य को यादगार बनाकर नई पीढ़ी को प्रेरित किया गया।
    इस आयोजन ने गैर‑सरकारी संगठनों को भी स्थानीय कलाकारों के साथ सहयोग करने का अवसर दिया।
    भविष्य में यदि ऐसे कार्यक्रमों को प्रदेश‑स्तर पर बहुप्रदर्शनी में बदला जाए तो बिहार की सांस्कृतिक निर्यात क्षमता बढ़ेगी।
    इस तरह के कदम से न केवल कला को संरक्षण मिलेगा, बल्कि पर्यटन भी बढ़ेगा।
    इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि राजनीति और संस्कृति मिलकर सामाजिक एकता को सुदृढ़ करते हैं।
    इस आयोजन की सफलता से यह स्पष्ट है कि जनमत की आवाज़ को सही मंच देना आवश्यक है।
    अंत में यह कहा जा सकता है कि अगिआंव जैसे छोटे गाँवों में भी बड़े परिवर्तन संभव हैं, यदि स्थानीय प्रतिभा को सम्मान और मंच मिले।

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    Govind Kumar

    अक्तूबर 1, 2025 AT 09:21

    यह देखना अभूतपूर्व है कि स्थानीय कला को राष्ट्रीय नेता समर्थन दे रहे हैं। इससे ग्रामीण कलाकारों में नई आशा जगी है।

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    Shubham Abhang

    अक्तूबर 1, 2025 AT 12:07

    वाकई में, लालू सर का इस तरह के कार्यक्रम में भाग लेना, एकदम “बिलकुल ही” यादगार रहा!! ऐसे आयोजन से गाँव‑गाँव में कला का पुनर्जागरण हो सकता है; आशा है आगे भी ऐसे प्रयास जारी रहें।

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    Hariprasath P

    अक्तूबर 1, 2025 AT 14:54

    भाई लोग, ये सब देखके लग रहा है कि politics और culture मिलके एक धंधा बना रहे हैं। वैसे भी, लोकनर्त्य लोग मेहनत करते हैं।

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    fatima blakemore

    अक्तूबर 1, 2025 AT 17:41

    आर्ट और पॉलिटिक्स का संगम अक्सर गहराई में सोच को जाग्रत करता है। इस आयोजन ने हमें याद दिलाया कि सांस्कृतिक धरोहर हमारे जीवन का अहम हिस्सा है।

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    vikash kumar

    अक्तूबर 1, 2025 AT 20:27

    लौंडा नाच का प्रदर्शन उच्चबुद्धि कला संगत का उदाहरण है। यह ग्रामीण संगीत की शुद्धता को दर्शाता है।

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    Sandhya Mohan

    अक्तूबर 1, 2025 AT 23:14

    भोजपुर की धड़कन यहाँ पर साफ सुनाई देती है। कार्यक्रम ने सभी को एकजुट किया।

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    Prakash Dwivedi

    अक्तूबर 2, 2025 AT 02:01

    इस तरह के प्रयत्न स्थायी सामाजिक बदलाव लाते हैं।

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    Rajbir Singh

    अक्तूबर 2, 2025 AT 04:47

    राजनीति और लोक कला का संगमरमर समान रूप से जुड़ा होना चाहिए। यह समाज को सशक्त बनाता है।

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    Swetha Brungi

    अक्तूबर 2, 2025 AT 07:34

    भोजपुर में संस्कृति का योगदान अक्सर अनदेखा रहता है, परन्तु इस प्रकार के इवेंट से उसकी अहमियत फिर से उजागर होती है। स्थानीय कलाकारों को मंच मिलने से उनके आत्मविश्वास में इजाफा होता है, और युवा वर्ग के लिये प्रेरणा स्रोत बनते हैं।

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    Trupti Jain

    अक्तूबर 2, 2025 AT 10:21

    लालू यादव की उपस्थिति ने माहौल को रोमांचक बना दिया।

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