जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के छह साल: क्या बदला, क्या बाक़ी?
5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया—जम्मू-कश्मीर (जहाँ विधानसभा है) और लद्दाख (बिना विधानसभा के)। यह फैसला देशभर में सुर्खियों में रहा, सुरक्षा से लेकर राजनीति और आम जिंदगी तक, सब कुछ अचानक बदल गया। सरकार ने दावा किया कि इससे जम्मू-कश्मीर के लोगों को ज़्यादा अधिकार और बेहतर विकास मिलेगा। लेकिन सच में वहां के हालात कैसे बदले?
फैसले के बाद तुरंत सख्त कर्फ्यू लगा, मोबाइल-इंटरनेट बंद कर दिए गए और दर्जनों बड़े नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया। कई महीनों तक सामान्य नागरिकों को मुश्किलें झेलनी पड़ी। दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने को संविधान के दायरे में सही ठहरा दिया।
सुरक्षा और आर्थिक बदलाव
आतंकी घटनाओं में बड़ी कमी आई है। सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बलों के बीच बेहतर तालमेल के चलते अब आतंकवाद रोकने के लिए सिर्फ जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि पहले से सटीक ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। आतंकियों के नेटवर्क ध्वस्त करने पर फोकस बढ़ा है। लगातार ऑपरेशन और खुफिया जानकारी ने बड़ी घटनाओं की संभावना को कम कर दिया है।
विकास की दिशा में, मेल-जोल और रोजगार के नए अवसर देने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए हैं। नई सड़कें, पुल, रेल कनेक्शन और पर्यटन को बढ़ावा देने की कोशिशें हो रही हैं। लद्दाख में भी, पर्यटन के जरिए आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार दी गई है। जम्मू-कश्मीर के कई छोटे कस्बों और गाँवों में युवा खुद को रोज़गार के नए विकल्पों के लिए तैयार कर रहे हैं।
सिर्फ पर्यटन ही नहीं, बाकी बिज़नेस क्षेत्र के लिए भी निवेश प्रोत्साहन दिये गए हैं, हालांकि जमीनी स्तर पर अमल और सुविधाएं मिलाने में अभी काफी दिक्कतें बाकी हैं।
अनुच्छेद 35A जिसे हटाया गया, उसके बाद बाहरी लोग भी जमीन खरीद सकते हैं और वहाँ नौकरी कर सकते हैं। पहले जिन परिवारों को सिर्फ निवास प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी या जमीन का हक मिलता था, अब वे सारे बंधन हट गए हैं। इस बदलाव से समाज के कई हिस्सों ने फायदा होने की उम्मीद जताई, हालांकि स्थानीय लोगों को अपनी पहचान और रोज़गार को लेकर चिंता भी बढ़ी है।
- गांव-शहर में पंचायत और स्थानीय चुनाव कराए गए।
- 73वां और 74वां संविधान संशोधन लागू हुआ।
- कुछ पुराने भेदभाव कानून हटाए गए।
अब सवाल उठता है—क्या सब कुछ ठीक हो गया? जवाब इतना आसान नहीं। विपक्ष इस फैसले को संघीय ढांचे पर चोट मानता है। कई लोग राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग कर रहे हैं, जो अब तक लटका हुआ है। राजनीतिक प्रक्रिया का रफ्तार बहुत धीमी है और चुनाव कब होंगे, इसका कोई ठोस रोडमैप अभी तक सामने नहीं आया है।
कुछ जगहों पर विकास की बातें दिखती हैं, लेकिन ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में आज भी बेरोजगारी और सुविधाओं की कमी बनी हुई है। बिजनस में बाहर से निवेश का माहौल अभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ है। पर्यटकों की संख्या जरूर बढ़ी है, पर कई पुराने होटल और गेस्ट हाउस अब भी खाली हैं। सुरक्षा के बहुत सारे दावे हैं, लेकिन आम लोगों की सोच में अनिश्चितता और डर की हल्की झलक अभी भी दिख जाती है।
इन छह सालों में जम्मू-कश्मीर ने बदलाव जरूर देखे, लेकिन आगे कौन सा रास्ता पकड़ेगा, इसका जवाब शायद अब भी वक्त के पास ही है।
shubham gupta
अगस्त 7, 2025 AT 04:46अनुच्छेद 370 हटने के बाद सुरक्षा में सुधार अवश्य हुआ है। आतंकी घटनाएँ कम हुई हैं, और लोगों को अब बाहर निकलने में थोड़ी सुरक्षा महसूस हो रही है। लेकिन विकास की बात करें तो गाँवों तक इंफ्रास्ट्रक्चर पहुँचने में अभी दस साल लग सकते हैं। रेल लाइन और हाईवे तो शहरों तक ही सीमित हैं।
sneha arora
अगस्त 8, 2025 AT 03:16मुझे लगता है कि बदलाव धीरे-धीरे आ रहा है 😊 अभी तो बस शुरुआत हुई है। जब तक युवाओं को नौकरियाँ मिलेंगी, तब तक लोग घबराए रहेंगे। पर एक बार जब एक गाँव में इंटरनेट और बैंकिंग आ जाएगी, तो दुनिया बदल जाएगी 🌱
ashi kapoor
अगस्त 8, 2025 AT 04:59हाँ बिल्कुल, आतंकवाद कम हुआ है... क्योंकि अब लोग डर के मारे बाहर नहीं निकल पा रहे। जब तक लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है, तब तक आतंक नहीं बंद होगा, बस दब गया है। और जमीन खरीदने की इजाजत? अब बाहरी लोग यहाँ की जमीन पर कब्ज़ा करेंगे, और हम अपने घरों से बाहर निकल जाएँगे। ये 'विकास' क्या है? बस एक नया नाम जिसके पीछे पुराना अत्याचार छिपा है।
Mansi Arora
अगस्त 8, 2025 AT 21:42मैंने एक दोस्त को जम्मू से बात की थी... उसने कहा कि अब जो लोग जम्मू-कश्मीर में बिजनेस कर रहे हैं, वो सब दिल्ली या मुंबई के हैं। स्थानीय लोग अब सिर्फ बेचने वाले या ड्राइवर बन गए हैं। नौकरी के लिए रिज्यूमे भेजते हैं तो कहते हैं 'प्रोफाइल नहीं मैच कर रहा'। ये क्या विकास है? ये तो निर्वासन है।
Amit Mitra
अगस्त 10, 2025 AT 06:22मैं तो सोचता हूँ कि ये सब बदलाव एक नए इतिहास की शुरुआत है। अनुच्छेद 370 ने तो जम्मू-कश्मीर को एक दरवाज़ा बना दिया था जो बाहर से बंद था। अब वो दरवाज़ा खुल गया है। जब तक हम ये नहीं समझेंगे कि विकास का मतलब सिर्फ रोड और होटल नहीं है, बल्कि अवसरों का बराबर वितरण है, तब तक ये बदलाव अधूरा रहेगा। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार - ये तीनों एक साथ आएँ तो ही असली बदलाव होगा।
anand verma
अगस्त 12, 2025 AT 06:03हमें इतिहास को देखना चाहिए। अनुच्छेद 370 के तहत भी जम्मू-कश्मीर के लोगों की आय देश के औसत से कम रही। बेरोजगारी ज्यादा रही। अब भी बहुत कुछ बाकी है, लेकिन ये दिशा सही है। हमें राजनीतिक विवादों में नहीं, बल्कि शिक्षा और रोजगार के कार्यक्रमों में लगना चाहिए। एक शहर में जब युवा अपने घर पर ही सॉफ्टवेयर डेवलप कर रहे हैं, तो ये विकास है।
Gajanan Prabhutendolkar
अगस्त 14, 2025 AT 00:52इन सब बातों का एक ही मकसद है - आपको बताना कि सब कुछ ठीक है। लेकिन आपने कभी सोचा है कि जब इंटरनेट छह महीने बंद रहा, तो जम्मू-कश्मीर के छात्रों की पढ़ाई कैसे हुई? जब नेताओं को गिरफ्तार किया गया, तो लोगों की आवाज़ कैसे बुझाई गई? अब जो लोग बाहर से आ रहे हैं, वो बस जमीन खरीद रहे हैं। और जब वो जमीन बेच देंगे, तो लोग भाग जाएँगे। ये विकास नहीं, ये एक अधिकार का छल है।
Yash Tiwari
अगस्त 14, 2025 AT 04:54यहाँ कोई विकास नहीं हुआ, बस एक नए रूप में शासन का आगमन हुआ है। अनुच्छेद 370 का उन्मूलन एक संवैधानिक अत्याचार है। लद्दाख को अलग करना, जम्मू-कश्मीर के जनसांख्यिकीय संतुलन को तोड़ने की योजना का हिस्सा है। जब आप एक जनजातीय समुदाय को उसकी भूमि से अलग करते हैं, तो वह अपनी पहचान खो देता है। इस विकास के पीछे एक विश्वासघात छिपा है - आप जो कह रहे हैं, वह एक राजनीतिक नाटक है।
Sagar Solanki
अगस्त 16, 2025 AT 02:24अनुच्छेद 370 हटाना एक राष्ट्रीय सुरक्षा निर्णय था। अब जब बाहरी निवेशक आ रहे हैं, तो ये लोगों के लिए नए रोज़गार के अवसर बन रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के युवा अब अपनी आत्मनिर्भरता के लिए लड़ रहे हैं। ये एक राष्ट्रीय एकीकरण का अभियान है। जिन लोगों को लगता है कि ये विनाश है, वो अपने पुराने भावनात्मक बंधनों से निकल नहीं पा रहे। ये अब नए भारत का निर्माण है।