कोलकाता दुर्गा पूजा 2025: पंडालों में श्रमिकों से लेकर सेना तक के विविध संदेश

कोलकाता दुर्गा पूजा 2025: पंडालों में श्रमिकों से लेकर सेना तक के विविध संदेश
Anuj Kumar 24 सितंबर 2025 13

पंडालों में छाए सामाजिक संदेश

जब कोलकाता की गलियों में झूम उठती है दुर्गा पूजा, तो बहुत से लोग इसे सिर्फ धार्मिक माहौल समझते हैं। 2025 की इस बार, पंडालों ने अपने डिज़ाइन में ऐसा बोझ उठाया है जो कई सालों से अनसुना रहा – श्रमिकों की मेहनत, सेना का बलिदान और पर्यावरण की चिंता। यही कारण है कि इस साल की कई पंडालें दर्शकों को केवल रंग‑रूप नहीं, बल्कि एक कहानी सुनाती हैं।

सबसे प्रमुख थीम में से एक है कोलकाता दुर्गा पूजा 2025 के पंडालों में प्रवासी श्रमिकों को सम्मान देना। वे वही हैं जो अक्सर शहर से दूर रह कर इन पंडालों की धातु‑कंक्रीट की बनावट तैयार करते हैं। कुछ पंडालों ने इस बात को बड़े पटाखे की तरह नहीं, बल्कि सादे बैनर और फोटोग्राफ़ में उजागर किया है – जैसे कि श्रमिकों की आँखों में चमकते सपने और उनकी थकान की कहानियाँ। इन कहानी‑परक टुकड़ों में दिखाया गया है कि कैसे प्रवासी श्रमिकों की परिश्रम ने कोलकाता के इस महोत्सव को संभव बनाया है।

दूसरी ओर, ‘ऑपरेशन सिंधूर’ नामक थीम ने भारत की सेना को श्रद्धांजलि दी। संतोष मिश्रा स्क़्वायर, यंग बॉयज क्लब और कई अन्य पंडालों ने सैनिकों की बहादुरी को दिखाने के लिए लाल‑सिन्धूर रंग के जाल बिछाए। कुछ पंडालों ने उन आतंकियों के शिकार हुए नागरिकों की कहानियों को भी झलकाया, जिससे दर्शकों को याद दिलाया गया कि शांति कितनी नाज़ुक होती है।

पर्यावरण प्रेमियों ने भी अपनी आवाज़ उठाई। श्यामनगर के बैनर्जीपारा पुञा मण्डल ने वाराणसी के घाटों को दोबारा बनाकर नदी‑प्रदूषण के मुद्दे को उजागर किया। जल के किनारे पर स्थापित धुंधली रोशनी और कचरे के ढेर ने दर्शकों को यह पूछने पर मजबूर कर दिया – क्या हम अपनी नदियों को फिर से स्वच्छ बना पाएंगे? यही नहीं, कुछ पंडालों ने झील‑के‑काठ पर स्थापित कूड़े‑कटोरे को कला के रूप में इस्तेमाल किया, जिससे पर्यावरण की रक्षा के लिए छोटे‑छोटे कदमों की जरूरत पर बल दिया गया।

इतिहास के पन्नों को भी इस बार नहीं भुलाया गया। सामाजसेवी संघ ने 16 अगस्त 1946 के communal harmony को याद किया, जहाँ स्थानीय लोग उग्र तनाव के बीच एकजुट थे। उनके पंडाल में फ्लेक्स‑बोर्ड, मॉडल‑हाउस और हाथ‑से‑बनाए बैनर से दिखाया गया कि कैसे असहिष्णुता के समय में भी एकता की ताकत बनी रह सकती है।

उत्सव का नया रूप: कला, पर्यावरण और इतिहास

पारम्परिक रूप से कोलकाता की दुर्गा पूजा को शिल्प‑कौशल और आध्यात्मिक भक्ति के घनीभूत मिश्रण के रूप में देखा जाता है। पर आजकल इस उत्सव ने यूनिस्को के मान्यताप्राप्त ‘इंटेंसल एंट्री’ की तरह कला, सामाजिक चेतना और पर्यावरणीय जागरूकता को एक साथ जोड़ा है।

मुडियाली दुर्गा उत्सव समिति ने अपनी पारम्परिक अनुष्ठानों को बरकरार रखे हुए, नई कलात्मक प्रयोगों को भी अपनाया है। वहीं, काशी बोस लेन ने ‘सादगी’ की थीम के तहत लीला मज़ुमदार की लिखावट‑प्रेरित बैनर लगाए, जिससे बच्चे‑बच्चे भी सादगी की खूबसूरती को समझ पाए। इस पंडाल की अनूठी बात यह थी कि हर कोने पर छोटा‑छोटा खुला मंच था, जहाँ लोग अपनी कहानियां साझा कर सकते थे।

हथीबागन यूनिवर्सल ने कोलकाता की गंगा घाटों को सिमुलेट किया। नदी‑किनारा, नाव‑डॉक और घाटों की धुंधली रोशनी ने लोगों को वही महसूस कराया, जो 17वीं सदी के बैरोक स्थापत्य में मिलती है। यह पुनर्निर्माण न केवल आध्यात्मिकता को दिखाता है, बल्कि आज के समय में जल‑संरक्षण की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।

अर्जुनपुर ‘अमर साबै’ पंडाल ने ‘मुखमुखी’ नामक इंटरेक्टिव इंस्टॉल प्रस्तुत किया, जहाँ स्टेनलेस‑स्टील के सैकड़ों फ़्रेम और शीट्स में दर्शकों के प्रतिबिंब देखे जा सकते थे। यह प्रयोग आगंतुकों को स्वयं की झलकियों में आत्म‑निरीक्षण करने का अवसर देता है – एक ही क्षण में कला और आत्म‑संवाद का संगम।

बाजार‐से‑बाहरी दर्शकों को भी कगार पर ले जाने के लिए जयपुर में सुदूर‑बन के जंगलों को तीन‑लेयर ज़ोन में पुनः निर्मित किया गया। घने घास, ऊँची बांस और झाड़ी‑जैसे संरचनाओं ने जंगल की श्वास को महसूस करवाया, जहाँ देवी दुर्गा और उनके बामन अपने मूल स्वरूप में बैठी थीं। इस प्रकार की भव्यता ने दर्शकों को प्राकृतिक संरक्षण की नई दहलीज पर पहुंचा दिया।

सभी पंडालों में स्पष्ट था – दुर्गा पूजा अब केवल देवी की पूजा नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों, इतिहास और भविष्य की दिशा पर चर्चा का मंच बन गई है। चाहे वह श्रमिकों का सम्मान हो, सेना को श्रद्धांजलि, पर्यावरण की सुरक्षा या इतिहास की सीख – हर थीम ने एक आवाज़ उठायी है, जो कई लोगों को सोचने पर मजबूर करती है। यही कारण है कि कोलकाता की इस साल की दुर्गा पूजा को ‘व्यापक‑सांस्कृतिक’ कहा जा सकता है, जहाँ कला, धर्म और सामाजिक चेतना का एक अभूतपूर्व संगम हुआ है।

13 टिप्पणि

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    Abhishek Deshpande

    सितंबर 25, 2025 AT 01:33

    ये सब थीम्स... बस एक बड़ा राजनीतिक नाटक है। कौन जानता है कि ये पंडाल बनाने वाले किसके पैसे से काम कर रहे हैं? श्रमिकों का सम्मान? हाँ, जब तक वो बिल नहीं भेजते। सेना की श्रद्धांजलि? अच्छा, तो आजकल दुर्गा के लिए बैनर बनाने वाले को अब सैनिक बना दिया जाता है? ये सब एक बड़ा धोखा है।

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    vikram yadav

    सितंबर 26, 2025 AT 02:47

    अरे भाई, ये सब बहुत अच्छा है। पहले तो बस लकड़ी-पेंट का जलवा था, अब ये जागृति है। श्रमिकों की आँखों में सपने देखना, नदियों का प्रदूषण दिखाना-ये तो वाकई संस्कृति का विकास है। ये नया दुर्गा पूजा है, पुराने तरीके से नहीं। ये दुर्गा के नाम पर नहीं, बल्कि इंसानियत के नाम पर है।

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    Tamanna Tanni

    सितंबर 26, 2025 AT 03:45

    बहुत खूबसूरत है। ❤️

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    Rosy Forte

    सितंबर 28, 2025 AT 01:34

    यहाँ तक कि दुर्गा पूजा को भी सामाजिक न्याय के आधार पर रिकन्स्ट्रक्ट कर दिया गया है-एक अत्यधिक पोस्ट-मॉडर्न डिसकोर्स जो धर्म को एक सामाजिक बैनर में बदल देता है। ये नहीं कि भक्ति खत्म हो रही है, बल्कि ये कि भक्ति को एक एथिकल फ्रेमवर्क के अंतर्गत नियंत्रित किया जा रहा है-एक नए तरह का राष्ट्रीय धर्म।

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    Yogesh Dhakne

    सितंबर 29, 2025 AT 17:49

    मैं भी गया था श्यामनगर के पंडाल में। वो नदी का दृश्य... बस रो देने लगा। बच्चे भी खड़े थे, बिना कुछ बोले। ये तो असली पूजा है। 🙏

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    kuldeep pandey

    सितंबर 30, 2025 AT 02:13

    अरे भाई, अब तो दुर्गा के नाम पर नदियों को बचाने का नाटक भी हो गया? बहुत बढ़िया। जब तक तुम्हारे घर में कचरा नहीं फेंका जाएगा, तब तक ये सब बस फोटो शूट है।

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    Hannah John

    सितंबर 30, 2025 AT 07:05

    ये सब अमेरिका से आया है न? वो वाला ग्लोबल सोशल जस्टिस वाला वाइरल वाइब? दुर्गा के पंडाल में जंगल बनाने का क्या मतलब? अगर ये असली थीम है तो फिर बंगाल के लोगों को अपने घरों में जल नहीं दिया जा रहा? ये सब बस ड्रामा है

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    dhananjay pagere

    सितंबर 30, 2025 AT 07:55

    सेना को श्रद्धांजलि? अच्छा तो अब ये भी राष्ट्रवाद का हिस्सा बन गया? ये जो लाल-सिंधूर बिछाया है... वो असली खून नहीं तो फेंका गया है? 😎

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    Shrikant Kakhandaki

    सितंबर 30, 2025 AT 10:31

    दुर्गा पूजा में बांस के झाड़ी और जंगल बनाना? ये तो बस बिग ब्रदर का बाजार लगा रहा है। कौन बना रहा है ये पंडाल? क्या कोई आईआईटी का छात्र नहीं बन गया? ये नहीं कि देवी नहीं हैं... बल्कि ये कि देवी के नाम पर कोई एप बना रहा है

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    bharat varu

    सितंबर 30, 2025 AT 20:16

    भाईयों और बहनों, ये सब बहुत बढ़िया है! दुर्गा पूजा तो हमारी पहचान है, और अगर इसमें श्रमिकों की मेहनत को याद किया जा रहा है, तो ये हमारे लिए गर्व की बात है! जिन लोगों ने ये सब बनाया, उन्हें बधाई! 🙌

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    Vijayan Jacob

    अक्तूबर 2, 2025 AT 14:15

    हम जिस देवी को पूजते हैं, वो शायद इन सब बैनरों से बहुत दूर है। लेकिन अगर इन बैनरों से किसी का दिल बदल गया, तो शायद ये उसकी अपनी देवी है।

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    Saachi Sharma

    अक्तूबर 4, 2025 AT 13:26

    पंडाल बनाने वाले श्रमिकों को एक चाय भी नहीं मिली होगी।

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    chandra aja

    अक्तूबर 6, 2025 AT 10:12

    अब तो दुर्गा पूजा में एनजीओ भी लग गए। जब तक तुम्हारे घर में बिजली नहीं आ रही, तब तक ये सब बस फेसबुक पोस्ट है। अगर तुम्हें श्रमिकों की चिंता है, तो उन्हें रोज़ का खाना दे। बैनर नहीं।

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