
चैत्र नवरात्रि 2025 का दूसरा दिन देवियों‑देवताओं में से एक, Maa Brahmacharini को समर्पित है। यह दिन न केवल धार्मिक अनुयायियों के लिए बल्कि आध्यात्मिक खोजकर्ताओं के लिए भी खास महत्व रखता है, क्योंकि ब्रह्मचारिणी शक्ति, शुद्धि और निरन्तर संयम का मूल रूप दर्शाती हैं। इस अवसर पर घर‑घर में क़लश स्थापित कर, विशेष अर्पण और मंत्रोच्चारण करके देवी की उपस्थिति को आमंत्रित किया जाता है।
Maa Brahmacharिनी कौन हैं?
ब्रह्मचारिणी देवी पार्वती का वह रूप है जिसमें उन्होंने विवाह नहीं किया, बल्कि योग और तपस्या के पथ पर अडिग रहकर शनि को प्राप्त किया। हाथ में जपमाला और बाएँ हाथ में कमण्डल लेकर वे विष्णु‑शिव के मिलन के प्रतीक के रूप में दर्शाई जाती हैं। उनका नाम ही ‘ब्रह्मचर्य’ शब्द से आया है—आत्म‑नियंत्रण, संयम और शुद्ध ऊर्जा का प्रतीक। इस रूप को पूजते समय भक्तों को भी मन, वचन और कर्म में शुद्धि लाने का प्रयास करना चाहिए।

चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजन विधि और विशेष अनुष्ठान
दूसरे दिन का पूजन कई चरणों में बँटा होता है, जिसमें क़लश स्थापना से लेकर अर्पित भोजन तक प्रत्येक क्रिया का अपना आध्यात्मिक अर्थ है। नीचे दी गई विस्तृत प्रक्रिया को साफ‑सुथरे मन से अपनाएँ।
क़लश स्थापना (Kalash Sthapana)
- सुबह स्नान के बाद, साफ‑सुथरे कपड़े पहनें और शुद्ध पानी से हाथ‑पैर धोएँ।
- एक चौनर या मिट्टी की थाली को तीन परतों की मिट्टी से भरें, ऊपर सात प्रकार की अनाज (जैसे चावल, गेहूँ, जौ आदि) डालें।
- थोड़ा पानी छिड़कें ताकि बीजों को जीवन मिल सके।
- क़लश के भीतर गंगा जल, सूँधी, सिक्के, अक्षत (हल्का सौतेला धान) और दुर्वा घास रखें।
- क़लश के बाहरी भाग पर लाल कुमकुम से स्वस्तिक बनायें।
- पाँच आम के पत्ते क़लश के गर्दन के चारों ओर रखें, ऊपर से नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर लाल धागे से बांधें।
क़लश स्थापित होने पर, सभी भक्त एक साथ दीप जलाकर, ध्वनि-नीचे ध्वनि (डमरू) की ताल पर मंत्र जाप करें। यह क़लश दिन‑भर का पवित्र केंद्र बन जाता है।
दैनिक पूजा क्रम
- गंगाजल से देवी की मूर्ति तथा पूजा स्थल को स्नान कराएँ।
- सफेद कपड़े और सफेद रंग के फूल (मुख्यतः चमेली) अर्पित करें।
- भास्वर्य (दूध), दही और शहद से अभिषेक करें; साथ ही हल्का तेल डालें।
- भोग में शर्करा, कन्दन, और प्रसाद के रूप में शुद्ध शुगर तैयार करें।
- ‘ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः’ मंत्र को 108 बार जपें।
- दिए हुए घी और काफ़ी चंदन से आरती करें, फिर भजन‑कीर्तन से माहौल को पवित्र बनायें।
- समाप्ति पर प्रसाद को सभी परिवारजन तथा उपस्थित भक्तों में बाँटें।
रंग एवं अर्पण
दूसरे दिन का शुभ रंग सफेद है—शुद्धता और निरागसता का प्रतीक। इस कारण महिलाएँ और पुरुष दोनों सफेद वस्त्र पहनते हैं और सफेद फूल, विशेषकर चमेली, अर्पित करते हैं। साथ ही, हल्दी‑लाल मिश्रण (हल्दी और शंख) भी देवी को अर्पित किया जा सकता है, क्योंकि यह रंग ऊर्जा को शुद्ध करता है।
पवित्र मंत्र
- मुख्य मंत्र: ‘ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः’।
- द्वितीय मंत्र: ‘दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥’।
- तीसरा मंत्र: ‘या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥’।
इन मंत्रों का जाप जब मनःशुद्धि के साथ किया जाता है, तो मन की शान्ति के साथ साथ आत्म-सशक्तिकरण भी प्राप्त होता है।
आध्यात्मिक लाभ
भक्त जो सच्ची श्रद्धा और समरसता के साथ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं, उन्हें निम्नलिखित वरदान प्राप्त होते हैं:
- आत्म‑नियंत्रण और दृढ़ संकल्प में वृद्धि।
- जीवन के तनावों को सहन करने की क्षमता में वृद्धि।
- बुद्धि‑वृद्धि और आध्यात्मिक जागरण।
- अप्रत्याशित मृत्यु‑भय से सुरक्षा और दीर्घायु।
- समाज में नैतिकता और धर्मशास्त्र का प्रसार।
इस प्रकार, चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में शुद्धि और शक्ति लाने की प्रक्रिया है।